Saturday, March 21, 2009
शर्म हमको मगर नहीं आती ...
Friday, March 20, 2009
फिर क्यों डर रहे हैं हम ...?
फिर क्यों डर रहे है हम .......?
Wednesday, February 25, 2009
khabarnaamaa
एक ख़बर-जबलपुर के निकट एक गाँव में एक दंपत्ति पर उसी गाँव के दबंगों ने हमला किया.उन्हें जिन्दा जलाने का प्रयास किया गया .अधजली हालत में जब पत्नी घर से निकलकर भागी तो आतताइयों ने उसे पकड़कर घटनास्थल के ही निकट स्थित चौराहे पर उसके साथ मर्यादाभंग का घिनौना खेल खेला.हमेशा की तरह दुर्भाग्य यह की अडोसी- पड़ोसी सभी अपने -अपने घरों में दुबककर जली हुई महिला और उसके पति की दर्दभरी चीखें सुनते रहे.इस दंपत्ति का अपराध यह था की पति ने दबंगों के ख़िलाफ़ चुनाओ लड़ने का दुस्साहस दिखाया था.
दूसरी ख़बर-पच्चीस साल का पति और बाईस साल की पत्नी .दो बच्चे -एक की उम्र पाँच साल दूसरा सवा साल का.गृह कलह के चलते दोनों किसी भी कीमत पर एक दूसरे के साथ रहने को तैयार नहीं .मामला पहुँचा जबलपुर के परिवार परामर्श केन्द्र में.लाख समझाइश के बावजूद दोनों एक दूसरे से अलग रहने की जिद पर अडे रहे .अंततः फ़ैसला हुआ.अब बड़ा बेटा पति के साथ रहेगा और छोटा माँ के साथ।
तीसरी ख़बर-दो साल तक बेटी से इश्क लड़ाने वाला आशिक अपनी होने वाली सास को लेकर भाग गया. बेटी ने थाने में रिपोर्ट लिखाई है की उसके प्रेमी और माँ के ख़िलाफ़ कार्यवाही की जाए.रिपोर्ट में बेटी ने यह भी लिखवाया है की उसका भूतपूर्व आशिक उसकी माँ के साथ शादी रचाकर बिलासपुर में रह रहा है.लड़की का दर्द यह है कि अब वह अकेली रह गई है.उसका न पिता है और न अन्य कोई भाई अथवा बहन।
मेरी आवाज़-क्या हम इंसानों की बस्ती में रह रहे हैं?क्या इन तीनों घटनाओं में पीडितों को न्याय मिल पायेगा.पहली घटना में आतताई दबंगों को आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया है.पुलिस वालों का घिसा पिटा तर्क यह है कि कोई गवाह नहीं मिल रहा है.जबकि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग यह है की महिला का यह कहना ही पर्याप्त प्रमाण है कि उसके साथ दुराचार हुआ है.फ़िर भी पुलिस गवाह तलाश रही है.महिला का यदि आज मेडिकल टेस्ट करवाया जाए तो सामूहिक दुराचार की पुष्टि हो जायेगी.मगर उन कमजोरों की बात कौन सुने? जब तक मानव अधिकार संगठन सक्रिय होंगे तब तक शरीर के निशाँ और जख्म मिट चुके होंगे.गरीब दंपत्ति के पास जलने का इलाज कराने के भी पैसे नहीं न्याय पाने के लिए कोर्ट कचहरी की बात तो बहुत दूर।
दूसरी ख़बर में दोनों बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है ।एक बेटा माँ से तो दूसरा बाप से बिछड़ गया है.मासूम भाई जिन्होंने अभी एक दूसरे को ठीक से पहचाना भी नहीं अलग-अलग पते वाले हो गए.पति और पत्नी निश्चित रूप से नए जीवनसाथी चुनेंगे क्योंकि दोनों की उम्र अभी कुछ भी नहीं है .तब तो दोनों बच्चों का और भी बुरा हाल हो जाएगा।
तीसरी ख़बर के बारे मुझे सिर्फ़ इतना ही कहना है की यह पशु वृत्ति की याद दिलाती है.
Wednesday, February 18, 2009
दाल-भात में मूसरचंद
Sunday, February 15, 2009
एक माँ ऐसी भी...
क्या एक माँ भी ऐसी हो सकती है ?
हुआ यह कि तीन दिन पहले होशंगाबाद (पिपरिया ) के पास एक नवजात बच्ची को साठ फीट नीचे गहरी खाई मैं फैंक देने कि घटना हुई थी. तब भी खबर देखकर मन विचलित हो गया था. सांत्वना तब मिली जब पता चला कि चोबीस घंटे से ज्यादा खाई माँ पड़ी रहने के बावजूद भी वह नन्ही सी जान जीवित है और उसका इलाज चल रहा है . आज खबर यह यह मिली कि नवजात को खाई मैं फेंकने वाली माँ मेरे ही शहर जबलपुर की है. स्वाभाविक है कि रिपोर्टर प्रेमशंकर तिवारी ने खबर को डेवलप करने मैं मेहनत की. पता चला कि निर्दयी माँ ने बच्ची को मृत समझकर खाई में फैंक दिया था. माँ ने यह बयान थाने मैं दिया है. उसने यह भी बताया है कि वह एक शासकीय विद्यालय मैं शिक्षिका है और अपने स्कूल के बच्चो को लेकर जबलपुर (पाटन) से २६० किलोमीटर दूर पिपरिया पिकनिक पर गई थी. जीप मैं यात्रा करते वक्त है प्रसव पीडा हुई और बच्ची का जन्म हो गया, बच्ची चूँकि रोई नहीं इसलिए दुनिया देखने से पहले ही उसे दुनिया से विदा करने खाई मैं धकेल दिया।
क्या यह विश्वास करने लायक बयान है ?
क्या कोई महिला गर्भ के अन्तिम समय मैं पिकनिक पर २६० किलो मीटर दूर जायेगी ?
क्या प्रसव क्रिया से जुड़े कार्य महिला ने बिना किसी दाई नर्स की मदद के अकेले ही कर लिए ?
प्रश्न ढेरो हैं जिनका जवाब निर्दयी मन थाने मैं भी नही दे पाई । मगर एक बात तय है मेरे ख्याल से की यह मामला बालिका हत्या का है । एक निष्ठुर माँ ने पुरे ठंडे दिल से हत्यारी बन जाना स्वीकार कर लिया। यह बात अलग है की " जाको रखे साईंया मार सके न कोए की तर्ज पर शिशु का बाल भी बांका नही हुआ । माँ भी अब अपनी नवजात बाटी को पालने अपनाने तैयार है । अभी पुलिस की विवेचना चल रही है। कहानी मैं अभी और भी जाने कितने ट्विस्ट आयेंगे । पर क्या उस निष्ठुर माँ को अभी भी नारी और वह भी शिक्षिका कहलाने को अधिकार है? अस्पताल मैं इलाजरत नवजात बच्ची के रूप मैं भले ही जीवन मुस्कुरा रहा हो पर क्या मानवता नही रो रही होगी ...
और
मेरी- आप सबकी माँ
" ऐ अंधेरे देख ले , मुंह तेरा कला हो गया
माँ ने आँखे खोल दी , घर me ujala ho gaya . (मुन्नवर राणा)
"क्या seerat क्या सूरत है , माँ ममता की मूरत है ,
पाँव छुए और काम हुए ,अम्मा एक मुहुरत है । (मंगल नसीन)
Monday, February 9, 2009
कोई तो सुने सीमा की सिसकियाँ ...
Thursday, February 5, 2009
शब्द छोड़ गया शिल्पी
साफ़ दिल और दिमाग वाले लोगों,
प्यार की करोड़ मेगाटन ताकत से
घोषणा करो-
कि चमड़ी के रंगों
और पूजा के ढंगों से
इंसान बँट नहीं सकता।"
आइये हम सब मिलकर इन शब्दों के शिल्पी राजेंद्र अनुरागी को अपनी श्रद्धांजली दें.मुझे आज ही ख़बर मिली कि अब वे नहीं रहे.पर क्या वास्तव में ऐसे लोग हमारे बीच में से जा सकते हैं?शब्दों की अमरता उन्हें हमेशा हमारे बीच जीवित रखेगी.आख़िर इन्हीं राजेन्द्रजी ने तो वे कालजयी पंक्तियाँ लिखी थीं-
"आज अपना देश सारा लाम पर है,
जो जहाँ भी है ,वतन के काम पर है...."
Monday, February 2, 2009
यह कैसी श्रध्दा.....?
Tuesday, January 27, 2009
THE NOT SO RELEVENT REPUBLIC
Yes I am talking about our constituition.
It needs over-hauling.There are many laws ,which,when enacted,were very useful for the people of this country,but have now lost their relevence.What do you think about the SC/ST reservation, different laws for different communities,the all powerful political system,almost GOD like politicians,who are selling this beautiful country in the CHOR market?
Don`t you think the country now needs really stringent measures to curb inflation and to curb pollution.What do you think about the corruption?That`s where our sixty year old constituition is almost helpless.Hence we need surgery, that is why we ought to have amendments.
JAI HIND,JAI BHARAT.
Thursday, January 22, 2009
Why This Blog
How about starting a chat about the slumdogs.Only one out of a million can become a millionnaire what about the rest.