Wednesday, February 25, 2009

khabarnaamaa

एक ख़बर-जबलपुर के निकट एक गाँव में एक दंपत्ति पर उसी गाँव के दबंगों ने हमला किया.उन्हें जिन्दा जलाने का प्रयास किया गया .अधजली हालत में जब पत्नी घर से निकलकर भागी तो आतताइयों ने उसे पकड़कर घटनास्थल के ही निकट स्थित चौराहे पर उसके साथ मर्यादाभंग का घिनौना खेल खेला.हमेशा की तरह दुर्भाग्य यह की अडोसी- पड़ोसी सभी अपने -अपने घरों में दुबककर जली हुई महिला और उसके पति की दर्दभरी चीखें सुनते रहे.इस दंपत्ति का अपराध यह था की पति ने दबंगों के ख़िलाफ़ चुनाओ लड़ने का दुस्साहस दिखाया था.

दूसरी ख़बर-पच्चीस साल का पति और बाईस साल की पत्नी .दो बच्चे -एक की उम्र पाँच साल दूसरा सवा साल का.गृह कलह के चलते दोनों किसी भी कीमत पर एक दूसरे के साथ रहने को तैयार नहीं .मामला पहुँचा जबलपुर के परिवार परामर्श केन्द्र में.लाख समझाइश के बावजूद दोनों एक दूसरे से अलग रहने की जिद पर अडे रहे .अंततः फ़ैसला हुआ.अब बड़ा बेटा पति के साथ रहेगा और छोटा माँ के साथ।

तीसरी ख़बर-दो साल तक बेटी से इश्क लड़ाने वाला आशिक अपनी होने वाली सास को लेकर भाग गया. बेटी ने थाने में रिपोर्ट लिखाई है की उसके प्रेमी और माँ के ख़िलाफ़ कार्यवाही की जाए.रिपोर्ट में बेटी ने यह भी लिखवाया है की उसका भूतपूर्व आशिक उसकी माँ के साथ शादी रचाकर बिलासपुर में रह रहा है.लड़की का दर्द यह है कि अब वह अकेली रह गई है.उसका न पिता है और न अन्य कोई भाई अथवा बहन।

मेरी आवाज़-क्या हम इंसानों की बस्ती में रह रहे हैं?क्या इन तीनों घटनाओं में पीडितों को न्याय मिल पायेगा.पहली घटना में आतताई दबंगों को आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया है.पुलिस वालों का घिसा पिटा तर्क यह है कि कोई गवाह नहीं मिल रहा है.जबकि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग यह है की महिला का यह कहना ही पर्याप्त प्रमाण है कि उसके साथ दुराचार हुआ है.फ़िर भी पुलिस गवाह तलाश रही है.महिला का यदि आज मेडिकल टेस्ट करवाया जाए तो सामूहिक दुराचार की पुष्टि हो जायेगी.मगर उन कमजोरों की बात कौन सुने? जब तक मानव अधिकार संगठन सक्रिय होंगे तब तक शरीर के निशाँ और जख्म मिट चुके होंगे.गरीब दंपत्ति के पास जलने का इलाज कराने के भी पैसे नहीं न्याय पाने के लिए कोर्ट कचहरी की बात तो बहुत दूर।

दूसरी ख़बर में दोनों बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है ।एक बेटा माँ से तो दूसरा बाप से बिछड़ गया है.मासूम भाई जिन्होंने अभी एक दूसरे को ठीक से पहचाना भी नहीं अलग-अलग पते वाले हो गए.पति और पत्नी निश्चित रूप से नए जीवनसाथी चुनेंगे क्योंकि दोनों की उम्र अभी कुछ भी नहीं है .तब तो दोनों बच्चों का और भी बुरा हाल हो जाएगा।

तीसरी ख़बर के बारे मुझे सिर्फ़ इतना ही कहना है की यह पशु वृत्ति की याद दिलाती है.

Wednesday, February 18, 2009

दाल-भात में मूसरचंद

मेरी आवाज़ तो आपको सुननी ही पड़ेगी, मानना न मानना आपकी मर्ज़ी । मैं गुमनाम{अनोनिमस} शब्द या प्रश्न भी नहीं उछालना चाहता इसलिए सीधी बात मन की भड़ास के रूप में निकाल रहा हूँ.हो सकता है कि मैं अभिव्यक्ति की अपनी जिस स्वतंत्रता का उपयोग करने जा रहा हूँ उससे मैं ही टारगेट बन जाऊँ.जी हाँ,मेरा इशारा पिछले दो तीन दिनों से जारी उस शब्द युद्ध की ओर है जिसमें व्यक्तिगत खुन्नस ज्यादा नज़र आ रही है.छत पर धूप क्षसेंकने के साथ -साथ एक-दूसरे के सर से जुएँ बीनती महिलाऐं ,चौपाल पर बरगद के नीचे बैठकर हुक्का गुडगुडाते बुजुर्ग या दालान के कोने में अलसाई दुपहरिया में बात- बेबात मुस्कराती किशोरियों के बीच भी सदियों से बातचीत का यही प्रिय विषय रहा है. उनके लिए यह विषय महज़ टाइम पास का साधन हुआ करता था.मगर यहाँ यह कीचड उछालने का गंभीर माध्यम बन गया है। अरे भई,माना कि दोनों पक्ष कमजोर नहीं पर उस बेचारे तीसरे पक्ष का भी तो ख्याल रखें जो संख्या में नब्बे फीसदी है .जिसके लिए ब्लॉग 'सृजन' की सौगात लेकर आया है.भड़ास ओर अभिव्यक्ति में आख़िर फर्क ही क्या है?इन ब्लोगेर्स में कॉलेज में पढने वाले स्टूडेंट्स भी हैं तो पूरी दक्षता के साथ घर सम्भाल रहीं गृहणियां भी.भावुक कवि हैं तो आंखों में ढेरों सुनहरे सपने लेकर पत्रकारिता के पवित्र पेशे में कदम जमाने का प्रयास करते युवा भी.उनकी इस पवित्रता को बना रहने दें.सेक्स वैसे भी नितांत व्यक्तिगत क्रिया होती है.इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है.देश के संविधान में भी अठारह वर्ष से ज्यादा उम्र के प्रत्येक युवक-युवती को मन-माफिक बेड- पार्टनर चुनने का हक दिया गया है.उन्हें चुनने दें ना...? हम क्यों दाल-भात में मूसरचंद बनना चाहते हैं? यदि काम ग़लत हुआ है तो मामला थाने में जाना चाहिए,थाने के बाद अदालतें होती हैं और अदालत तो हम हैं नहीं......!

Sunday, February 15, 2009

एक माँ ऐसी भी...

आज एक खबर एडिट करते करते मन न जाने कैसा हो गया। वैसे तो यह खबर ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप मैं मेरे सामने तीन दिन पहले आई थी। मगर डेवलप आज हुई. पढ़ते ही दिल दिमाग दोनों ही झनझना उठे.
क्या एक माँ भी ऐसी हो सकती है ?
हुआ यह कि तीन दिन पहले होशंगाबाद (पिपरिया ) के पास एक नवजात बच्ची को साठ फीट नीचे गहरी खाई मैं फैंक देने कि घटना हुई थी. तब भी खबर देखकर मन विचलित हो गया था. सांत्वना तब मिली जब पता चला कि चोबीस घंटे से ज्यादा खाई माँ पड़ी रहने के बावजूद भी वह नन्ही सी जान जीवित है और उसका इलाज चल रहा है . आज खबर यह यह मिली कि नवजात को खाई मैं फेंकने वाली माँ मेरे ही शहर जबलपुर की है. स्वाभाविक है कि रिपोर्टर प्रेमशंकर तिवारी ने खबर को डेवलप करने मैं मेहनत की. पता चला कि निर्दयी माँ ने बच्ची को मृत समझकर खाई में फैंक दिया था. माँ ने यह बयान थाने मैं दिया है. उसने यह भी बताया है कि वह एक शासकीय विद्यालय मैं शिक्षिका है और अपने स्कूल के बच्चो को लेकर जबलपुर (पाटन) से २६० किलोमीटर दूर पिपरिया पिकनिक पर गई थी. जीप मैं यात्रा करते वक्त है प्रसव पीडा हुई और बच्ची का जन्म हो गया, बच्ची चूँकि रोई नहीं इसलिए दुनिया देखने से पहले ही उसे दुनिया से विदा करने खाई मैं धकेल दिया।
क्या यह विश्वास करने लायक बयान है ?
क्या कोई महिला गर्भ के अन्तिम समय मैं पिकनिक पर २६० किलो मीटर दूर जायेगी ?
क्या प्रसव क्रिया से जुड़े कार्य महिला ने बिना किसी दाई नर्स की मदद के अकेले ही कर लिए ?
प्रश्न ढेरो हैं जिनका जवाब निर्दयी मन थाने मैं भी नही दे पाई । मगर एक बात तय है मेरे ख्याल से की यह मामला बालिका हत्या का है । एक निष्ठुर माँ ने पुरे ठंडे दिल से हत्यारी बन जाना स्वीकार कर लिया। यह बात अलग है की " जाको रखे साईंया मार सके न कोए की तर्ज पर शिशु का बाल भी बांका नही हुआ । माँ भी अब अपनी नवजात बाटी को पालने अपनाने तैयार है । अभी पुलिस की विवेचना चल रही है। कहानी मैं अभी और भी जाने कितने ट्विस्ट आयेंगे । पर क्या उस निष्ठुर माँ को अभी भी नारी और वह भी शिक्षिका कहलाने को अधिकार है? अस्पताल मैं इलाजरत नवजात बच्ची के रूप मैं भले ही जीवन मुस्कुरा रहा हो पर क्या मानवता नही रो रही होगी ...
और
मेरी- आप सबकी माँ
" ऐ अंधेरे देख ले , मुंह तेरा कला हो गया
माँ ने आँखे खोल दी , घर me ujala ho gaya . (मुन्नवर राणा)
"क्या seerat क्या सूरत है , माँ ममता की मूरत है ,
पाँव छुए और काम हुए ,अम्मा एक मुहुरत है । (मंगल नसीन)

Monday, February 9, 2009

कोई तो सुने सीमा की सिसकियाँ ...

फिजा उर्फ़ अनुराधा बाली इन दिनों बेहद नाराज़ हैं । उन्हें उनके चाँद ने धोखा जो दे दिया है। मगर जाने क्यूँ मुझे ऐसा नहीं लग रहा कि हरयाणा की इस पूर्व उप महाधिवक्ता को धोखे की दुहाई देने का कोई हक है।अपने प्रदेश के डेपुटी सी ऍम से निकाह करते वक़्त उन्हें बखूबी पता था कि वे चंद्र मोहन की १८ साल पुरानी पत्नी सीमाजी के साथ अन्याय कर रही हैं। वैसे भी फिजा{अब} कानून की जानकार हैं। वे बालिग़ भी हैं और उनकी दिमागी हालत ख़राब होने का कोई प्रमाण भी अभी तक तो सार्वजनिक नहीं किया गया है,फ़िर वे कैसे प्रमाणित करेंगी कि उनके साथ धोखा हुआ है। सॉरी..., पहले तो मैं ये बता दूँ कि इस मुद्दे पर अपनी भड़ास निकालने कि जरूरत मुझे क्यूँ महसूस हुई। दरअसल, मैंने संजीव जी को पढ़ा और उनसे किंचित रूप से सहमत होने कि ललक मन में जाग उठी। फिजा किस बात कि शिकायत कर रहीं हैं। इस्लाम के जानकार,मौलवी आदि सभी कथित चाँद के साथ उनके निकाह को अवैध ठहरा चुके हैं.उनका कहना है कि सिर्फ़ शादी करने के लिए किसी को इस्लाम कबूल करने की इजाजत नहीं दी जा सकती .चंद्र मोहन का खतना भी नहीं हुआ.यह भी एक टेक्नीकल कारण बनेगा .क्यूंकि मेरे मुस्लिम मित्रों के अनुसार किसी पुरूष के मुसलमान होने की यह भी एक जरूरी शर्त है.फ़िर भी यदि इस निकाह को जायज मान लिया जाए,तब तो फिजा और भी मुश्किल में फंस जायेंगी .चाँद को इन्हें आसानी से तलाक़ देने का हक तो रहेगा ही,दो -तीन निकाह और करने का अधिकार भी रहेगा.खैर यह तो हुई कानूनी बात.भावनाओं से जुड़ा मुद्दा यह है कि आज भी किसी भी स्तर पर सीमा विश्नोई के अधिकारों पर बहस नहीं हो रही है । इस तरह के निकाह जाने कितनी सीमाओं का घर बर्बाद कर देते है । हालाँकि मुग़ल काल (अकबर -जोधा) से ही हमारे देश में इस तरह के विवाह प्रचलन में हैं । धर्मेन्द्र राज बब्बर जैसों ने कानून की इसी पेचीदगी का लाभ उठाया । ये तो ख्यात नाम लोग हैं उनके नक्शे कदम पर जाने कितने लोग चलते होंगे और जाने कितनी सीमायें घुट घुट कर जीने पर विवश होती होंगी । फिजां के समर्थन में कई महिला संगठन भी सुर में सुर मिला रहे है । वे कब फ़िक्र करेंगे चंद्रमोहन के घर के किसी कोने में सुबक रही सीमा की ... ?

Thursday, February 5, 2009

शब्द छोड़ गया शिल्पी

"आओ, तमाम दुनिया के
साफ़ दिल और दिमाग वाले लोगों,
प्यार की करोड़ मेगाटन ताकत से
घोषणा करो-
कि चमड़ी के रंगों
और पूजा के ढंगों से
इंसान बँट नहीं सकता।"
आइये हम सब मिलकर इन शब्दों के शिल्पी राजेंद्र अनुरागी को अपनी श्रद्धांजली दें.मुझे आज ही ख़बर मिली कि अब वे नहीं रहे.पर क्या वास्तव में ऐसे लोग हमारे बीच में से जा सकते हैं?शब्दों की अमरता उन्हें हमेशा हमारे बीच जीवित रखेगी.आख़िर इन्हीं राजेन्द्रजी ने तो वे कालजयी पंक्तियाँ लिखी थीं-
"आज अपना देश सारा लाम पर है,
जो जहाँ भी है ,वतन के काम पर है...."

Monday, February 2, 2009

यह कैसी श्रध्दा.....?

आज नर्मदा जयंती थी .जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है जैसे यदि हम इसी तरह से आस्था का पाखंड किसी पागल की तरह बघारते रहे तो एक दिन ऐसा भी आएगा जब हम माघ शुक्ल सप्तमी पर पतित पावनी चिर कुंवारी मणि जाने वाली माँ नर्मदा की बरसी मनाने लगेंगे.मेरी इस चिंता के पार्श्व में ढेरों कारण हैं .राम की गंगा की तरह भोले शंकर की नर्मदा भी मैली हो रही है .भक्तों की अगाध किंतु खतरों से अनभिज्ञ श्रध्दा माँ का गला घोंट रही है .नर्मदा नदी को जीवन दायिनी माना जाता है .किंतु यदि यही हाल रहा तो इसका प्रदूषण ना केवल भक्तों के लिए खतरनाक हो जाएगा बल्कि नदी को भी रोगग्रस्त कर देगा .पुराणों में कहा गया है की जो पुण्य गंगा में स्नान करने से मिलता है वह नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है ,फिर भी क्यों नहीं रोक पाते हम स्वयं को श्रध्दा का अतिरेक दिखाने से .दरअसल हम सब तमाशबीन बन गए हैं .कुछ मदारी और कई जमूरे मिलकर धर्म -धर्म खेल रहे हैं और मेरे जैसे तथाकथित बुद्धिजीवी ब्लॉग पर अपनी भड़ास निकालकर ख़ुद को चिन्तक सिद्ध करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ले रहे हैं .मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के थिंक टेंक का तमगा लगाकर घूम रहे अनिल माधव दवे जैसे नेता भी ,जो नर्मदा प्रदूषण मुक्ति का झंडा लेकर घूम रहे हैं,खामोश हैं, शायद हिंदू वोट बैंक के क्षरण के डर से.नर्मदा अभी हमें करोड़ों वर्षों तक विहीन होने से रोक सकती है बशर्ते हम अपनी शर्म का पानी बचाए रखें.कुतांत दूत -कालभूत-भीती हारी वर्मदे,त्वदीय पाद पंकजम-नमामि देवी नर्मदे.