Monday, October 17, 2016

जिनको कुछ नहीं चाहिए वे साहन के साह

आज फिर उस जोड़े पर नज़र पड़ गई... दोनों बेहद खुश दिख रहे थे... जाने किस बात पर खिलखिला रहे थे... शायद कोई गाना भी सुन रहे थे एक बाबा आदम के जमाने के ट्रांसिस्टर पर...होनी नहीं चाहिए थी पर ईर्ष्या हुई उनसे.... जब आज  हम लोग परिवार और यारों-दोस्तों के साथ बैठकर दो बातें करने को भी तरस जाते हैं.... फुरसत के लम्हे ढूंढते-ढूंढते महिनों  निकल जाते हैं तब ये अलमस्त  खिलखिला रहे थे.... हलकी-हलकी बारिश हो रही थी... दोनों ही एक पेड़ के नीचे बैठे थे.... आज सुबह से मेरी भी ऐसी ही इच्छा  हो रही थी की घर से ना निकलकर  या तो टीवी देखूं या कोई उपन्यास पढूं...  दो चार दोस्तों को बुलाकर कहीं आउटिंग पर निकल जाऊँ....मगर ऐसी आज़ादी मेरे नसीब में नहीं थी... कुछ जरूरी काम मेरा इंतज़ार कर रहे थे.... आखिर मन मारकर निकलना ही पड़ा... थोड़ा सा आगे बढ़ते ही  इस जोड़े पर नज़र पड़ गई... यह दरअसल एक भिखारी जोड़ा था...अपने आस-पास की दुनिया से बेपरवाह ,जो अपने वक़्त के खुद मालिक थे... जिन्हें इस बात की   चिंता नहीं  थी कि  बारिश होती रही तो शाम का खाना  मिल पायेगा या नहीं....अचानक कोई बीमारी हो गई तो इलाज के रुपये कहाँ से आएंगे.... उनके पास ना अपनी दीवारें थीं ना ही दरवाजा... फिर वे भी बेफिक्र थे.... एक दूसरे को समय दे रहे थे... गाने सुन रहे थे और मेरे जैसों को खुश रहने का मंत्र दे रहे थे... सुख - समृद्धि और वैभव के साथ साथ सामाजिक पद-प्रतिष्ठा के लिए हम लोग क्या-क्या नहीं खोते...कहाँ-कहाँ बेईमान नहीं होते....किस-किस का दिल नहीं दुखाते...कब-कब खुद को नहीं मारते.... ज़िन्दगी के रंगमंच पर अलग-अलग भूमिकाओं का निर्वाह करते-करते कब साँसों का हिसाब पूरा हो जाता है पता ही नहीं चलता...एक के ऊपर दूसरा आवरण ओढ़ते या  ओढाते..कहीं एक तो कहीं दूसरा चेहरा दिखाते फना हो जाती है ये छोटी सी ज़िन्दगी...उस भिखारी जोड़े के लिए उपजी ईर्ष्या शायद ईर्ष्या नहीं खुद पर लानत थी... शर्मिन्दगी  थी.... तभी याद आ गया रहीम का वह दोहा... "चाह गई,चिंता मिटी... मनवा बेपरवाह,,,,,,,जिनको कुछ नहीं चाहिए वे साहन के साह,.... "       

Friday, October 14, 2016

जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध

जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध



खबर है कि मेरे हमपेशा खबरची रवीश कुमार को ट्विटर के बाद अब अपना फ़ेसबुक अकॉउन्ट भी बंद कर देना पड़ा है.... एक ख़ास विचारधारा से जुड़े भक्तों को उनकी साफगोई पसंद नहीं आ रही है.... उन्हें और उनके परिवारवालों को रोज जान से मार देने सहित कई तरह की धमकियाँ मिल रही हैं... ट्विटर या फ़ेसबुक अकाउन्ट बंद कर देने का आशय यह नहीं है की रवीश  डर गए... वे तो बस फ़ालतू की बकवास पढ़कर अपना वक़्त जाया करने से बचना चाहते हैं....तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन के साथ भी ऐसा ही हुआ था... इसी विचारधारा के परमभक्तों ने उनकी भी कलम पकड़ने की कोशिश की थी... उनके साथ मारपीट भी की गई थी... तब उन्होंने कहा था की एक लेखक के रूप में मैं अब मर गया हूँ... वास्तव में उन्होंने उस घटना के बाद अपनी कलम को विराम दे दे दिया.... उसके भी पहले तस्लीमा नसरीन के साथ भी  ऐसा ही हुआ था...आपको शायद सलमान रुश्दी भी याद हों... उन्हें तो देश ही छोड़ देना पड़ा था... ये उदाहरण  हो सकता है एक नज़र में उतने गंभीर ना लग रहे हों मगर कलम को पकड़ने की इस असहिस्णुता के परिणाम मेरी दृष्टि में बेहद खौफनाक होंगे... 21 वीं सदी में जब हम  अंतरिक्ष को जीतने की सोच रहे हैं तब ऐसी मध्ययुगीन कबीलाई मानसिकता देश ,समाज और पीढ़ियों का कितना नुकसान करेगी इसकी कल्पना ही शरीर में सिहरन पैदा कर देती है... दी होगी संविधान ने इस देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति  की मुखरता पर ये जुनूनी और उन्मादी किसी कानून को नहीं मानते...राष्ट्रद्रोह  और राष्ट्रवाद की नई -नई परिभाषाएँ गढ़ रहे हैं ये भक्त.... जाने किस दिशा में जा रहा है मेरा भारत महान.... उन्मादियों की मुखरता के बीच समाज के ताने-बाने को एक ख़ामोशी भी तोड़ रही है..... हैरान कर देने वाली यह ख़ामोशी है उस पढ़े-लिखे मध्यम  वर्ग की जिसे इन हालातों में  मुखर  होना था क्योंकि वह शिक्षित है,, शिक्षित होने के नाते समझदार है और समझदार होने के बूते जिम्मेदार है.... मगर उसकी यह शिक्षा,,यह समझ और यह जिम्मेदारी सिर्फ नए वेतनमान,, एरियर्स,, बोनस और एक सुकून भरी ज़िन्दगी तक ही सिमट कर रह गई है...किन्तु यह सुकून भी कब तक... क्योंकि उस उन्माद और इस सुकून के बीच एक बेहद क्षीण सी लकीर है जो कभी भी टूटकर ठहरे  जल में भूचाल ला सकती है.... बेहद खतरनाक है यह तटस्थता.... उन जुनूनियों की मुखरता से शायद ज्यादा जहरीली साबित हो सकती है यह ख़ामोशी..... क्योंकि                                                                                            समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र 
                                             जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध।।।।  

Wednesday, October 12, 2016

वह ज़िन्दगी का गीत था...