Wednesday, February 18, 2009

दाल-भात में मूसरचंद

मेरी आवाज़ तो आपको सुननी ही पड़ेगी, मानना न मानना आपकी मर्ज़ी । मैं गुमनाम{अनोनिमस} शब्द या प्रश्न भी नहीं उछालना चाहता इसलिए सीधी बात मन की भड़ास के रूप में निकाल रहा हूँ.हो सकता है कि मैं अभिव्यक्ति की अपनी जिस स्वतंत्रता का उपयोग करने जा रहा हूँ उससे मैं ही टारगेट बन जाऊँ.जी हाँ,मेरा इशारा पिछले दो तीन दिनों से जारी उस शब्द युद्ध की ओर है जिसमें व्यक्तिगत खुन्नस ज्यादा नज़र आ रही है.छत पर धूप क्षसेंकने के साथ -साथ एक-दूसरे के सर से जुएँ बीनती महिलाऐं ,चौपाल पर बरगद के नीचे बैठकर हुक्का गुडगुडाते बुजुर्ग या दालान के कोने में अलसाई दुपहरिया में बात- बेबात मुस्कराती किशोरियों के बीच भी सदियों से बातचीत का यही प्रिय विषय रहा है. उनके लिए यह विषय महज़ टाइम पास का साधन हुआ करता था.मगर यहाँ यह कीचड उछालने का गंभीर माध्यम बन गया है। अरे भई,माना कि दोनों पक्ष कमजोर नहीं पर उस बेचारे तीसरे पक्ष का भी तो ख्याल रखें जो संख्या में नब्बे फीसदी है .जिसके लिए ब्लॉग 'सृजन' की सौगात लेकर आया है.भड़ास ओर अभिव्यक्ति में आख़िर फर्क ही क्या है?इन ब्लोगेर्स में कॉलेज में पढने वाले स्टूडेंट्स भी हैं तो पूरी दक्षता के साथ घर सम्भाल रहीं गृहणियां भी.भावुक कवि हैं तो आंखों में ढेरों सुनहरे सपने लेकर पत्रकारिता के पवित्र पेशे में कदम जमाने का प्रयास करते युवा भी.उनकी इस पवित्रता को बना रहने दें.सेक्स वैसे भी नितांत व्यक्तिगत क्रिया होती है.इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है.देश के संविधान में भी अठारह वर्ष से ज्यादा उम्र के प्रत्येक युवक-युवती को मन-माफिक बेड- पार्टनर चुनने का हक दिया गया है.उन्हें चुनने दें ना...? हम क्यों दाल-भात में मूसरचंद बनना चाहते हैं? यदि काम ग़लत हुआ है तो मामला थाने में जाना चाहिए,थाने के बाद अदालतें होती हैं और अदालत तो हम हैं नहीं......!

3 comments:

  1. avinash और yashwant को हमने bloging की dunia से ही पहचाना है. मध्य प्रदेश के लिए दोनों ही नए चेहरे हैं. अगर उनके अपने ब्लॉग पर वो सच नही लिख रहे हैं या एक दुसरे पर कीचड़ उछालने के लिए ब्लॉग का उपयोग कर रहे हैं तो वह दिन दूर नहीं जब उनके ब्लॉगों को पढने वाले केवल वो लोग होंगे जिन्हें उनकी लड़ाई में मजा आता है.

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  2. आपने ठीक कहा कि दाल-भात में मूसरचंद नहीं बनना है...मगर परिस्थितियां कभी-कभी इस कदर धकेल देती है कि हम न चाहते हुए भी इसके गिरफ्त में बंध जाते है
    बात हो दो बड़े दिग्गज के ब्लोगिंग के एतिहासिक सफर की, तो मैंने कुछ बातें महसूस की, उन्हें तेज की लडाई के नाम से लिखा
    आप गौर करें
    http://som-ras.blogspot.com/2009/02/blog-post_12.html
    हम सबका सफर सृजनात्मक रहे यही दुआ है मेरी

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  3. aapane kaha ki osso aapake shahar ke the unake baare me jarur kabhi likhe. aapaki aawaj jarur suni jayegi . usame bahut dard hai.

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