ज़रा सोचिये "सरकार" वह गुल्लक है काला धन नहीं
"आज अपना देश सारा लाम पर है,
जो जहाँ भी है ,वतन के काम पर है...."
"आज अपना देश सारा लाम पर है,
जो जहाँ भी है ,वतन के काम पर है...."
ख्यातिलब्ध शब्दशिल्पी मरहूम राजेंद्र अनुरागी जी की ये पंक्तियाँ आज मुझे अनायास ही तब याद आ गईं जब मैंने आज फिर एक बैंक के बाहर मजबूरियों की कतार देखी..... हालांकि ज़हन में इस कालजयी रचना की दूसरी पंक्ति का एक शब्द बदल गया जिसके लिए मन में ग्लानिभाव भी है..... जो जहां भी है "नोट" के काम पर है.... समय से कीमती कुछ नहीं होता.... वही समय किसी प्रोडक्टिव काम में लगने की जगह नोट बदलवाने के नॉन प्रोडक्टिव काम में ज़ाया हो रहा है... जिन धनपशुओं { कथित रूप से } के काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक के लिए यह फैसला "सरकार " ने लिया था वे तो अभी भी चैन की नींद सो रहे हैं.... हलाकान हो रहा है वह आम आदमी जो ब्लैक तो बहुत दूर वाइट मनी कमाने के लिए भी रोज अपने खून और पसीने का सौदा करता है.... "सरकार " सुनते हैं आपने यह फैसला यूपी के आसन्न चुनावों में माया बहन जी और मुलायम सिंह यादव को धोबी-पाट के दांव के रूप में किया है... ताकि वे चुनावों के लिए जोड़ कर रखे गए अरबों रुपयों का उपयोग वोट की मंडी में ना कर सकें.... सुनते यह भी हैं "सरकार" कि आपकी पार्टी के पास भी ऐसा ही आड़े वक़्त यानी चुनाव में काम आने वाला अर्थ था जिसे आपने पहले ही सफ़ेद करवा लिया.... फिर यह निर्णय लिया... ये तो खैर आरोप-प्रत्यारोप हैं...हमाम एक है और उसमें नहाने वाले भी एक हैं.... पर पिस तो "सरकार" वो मासूम रहा है जो आपके दिखाए हर ख्वाब से दिल लगा लेता है... अब आपको ये कौन समझाए कि जिस हिंदुस्तान पर आप राज कर रहे हैं वहां बेटी के जन्म के साथ ही एक गुल्लक बन जाती है जिसमें अपनी ख्वाहिशों का सौदा करके माँ-बाप रोज दो-चार-पांच-दस के नोट डालते रहते हैं.....यह गुल्लक कभी किसी बैंक का हिस्सा नहीं बनती पर बिटिया के शादी की उम्र का होते होते किसी बैंक अकाउंट की ही तरह हो जाती है.... पर "सरकार" आपने एक ही झटके में उस गुड़िया की शादी वाली गुल्लक को ब्लैक मनी बना दिया क्योंकि वो तो अन -अकॉउंटेड है ना... आपको यह भी कौन बताये "सरकार" कि कोई ठेले वाला...रिक्शा वाला या सब्जी वाला जो कुछ भी दिन भर में छोटे-छोटे नोट की शक्ल में कमाता है उसे शाम को अपने मोहल्ले के परचून वाले की दुकान में जरूरत का सामान खरीदने के बाद बंधवा लेता है यानी 500 -1000 के नोट में तब्दील करवाकर सहेज लेता है....और फिर एक दिन अपने घर,,अपने गांव जाकर माँ-पिता या पत्नी के हाथों में थमा देता है... आड़े वक़्त पर काम आने के लिए... वह पढ़ा-लिखा नहीं होता "सरकार" इसलिए बैंक की तरफ देखने से भी डरता है...मगर आपने उसकी इस गुल्लक को भी ब्लैक मनी बना दिया.... वो अखबार नहीं पढता "सरकार" और टीवी देखने की भी विलासिता उसकी किस्मत में नहीं है.... वह सुन जरूर रहा है की 1000 का नोट अब नहीं चलेगा क्योंकि ब्लैक मनी से युद्ध शुरू हुआ है...मगर वह यह सुनकर भी निश्चिन्त है क्यों कि उसे भरोसा है आप पर कि आप उसकी मेहनत की कमाई को थोड़े ही काल धन समझते होंगे....यह सोच कर वह संभवतः कोई प्रयास भी नहीं कर रहा गांव में अपने घर में आड़े-वक़्त के लिए सहेजे उन चंद लाल-पीले नोटों को बदलवाने का.... ज़रा सोचिये "सरकार" उसके साथ कितना बड़ा धोखा हो रहा है... सोचिये यह भी कि दिवाली के पहले ही गांवों में धान की फसल कटकर और बिक कर 1000 - 500 के नोटों की शक्ल में मेहनतकश किसानों के घर में पहुंची है... वो भी इस "मेहनताने" को बैंक में नहीं रखता....क्योंकि इसीसे उसको अगली फसल के लिए बीज और खाद खरीदने हैं....बहुत दिनों से मनुहार कर रही जीवनसाथी के लिए कोई छोटा सा ही सही गहना खरीदना है या बेटे को इंजीनियर बनाने की फीस चुकाना है.... यह सफ़ेद "मेहनताना" भी "सरकार" आपने एक ही झटके में काला कर दिया... हवाई जहाज से उतरकर कभी सड़क पर आइये और देखिये "सरकार" बैंकों की कतारों में लगी शक्लों को.... कोई बूढ़ा है...कोई अपंग तो कोई ऑफिस से छुट्टी लेकर लाइन में लगने आया है... गौर से देखिये इनमें कोई आपको काले धन का मालिक दिखता है क्या.... सड़क पर और आगे जाइये और देखिये उन रेहड़ी वालों को जिनसे अब कोई सौदा नहीं ले रहा और जो "दुष्यंत" के शब्दों में पत्थर उबालकर खाने और आसमान को ओढ़कर सोने मजबूर हैं.... क़दमों की हर आहट उन्हें एक दिलासा सा देती है कि शायद किसी को छोटे नोट मिल गए हैं और वो सौदा खरीदने आ रहा है.... "सरकार" इस लोकतंत्र में झटके और धोखे सहने का आदी तो हो गया है आम आदमी पर यह तो ज़ुल्म है उस पर ,,ऐसा ज़ुल्म जिसका जुर्माना भी वही भर रहा है....क्योंकि उनकी "सरकार" एक युद्ध लड़ रही है "जाने किससे"..... या शायद "उसीसे"...